Sunday, December 25, 2016

सुनहरी सुबह



छुना चाहु में  
हवा की परछाई  
दौडूँ भागूं पकड़ 
ना पाऊँ 

मुट्ठी में चाहूँ 
करना बंद 
सन्नाटों  की आवाज़ 
कर ना पाऊँ 

सुन री हवा 
अपने कान इधर ला 
सुना दूं आज 
अपने सारे राज़ 

कैसे  उस दिन 
चोरी से देखा 

भँवरे को फूलों से 
रस चुराते 

 उचक उचक कर 
ऊँची टहनी के घोंसले 

से  नन्ही चिरैया को 
पंख पसारते 



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