Monday, February 8, 2021

मन का तहखाना


उस फूल से चुरा के खुशबू
गुलाब से ले लिया रंग उधार
पत्तों पर ठहरी ओस की बूंद
रंगों को कर अंखियों में बंद
सारी....कीमती यादों को बांध गठरी में
सहेजा मन मंदिर में

बच्चों की खिलखिलाहट
बड़ों का आशीर्वाद
पति का प्यार
सभी समेट लिया आगोश में
सहेजा....सारे सपनों को
मन के बक्से में

जा कर दिल के तहखाने में
टटोल लेते है इन्हीं यादों को
जब भी मन उदास हो
खोल बक्सों को
जी लेते हैं....
वहीं सुखद पल फिर से

©Deeप्ती


Friday, February 5, 2021

कमरा नंबर १३



"सर एक कमरा मिलेगा, आज रात भर के लिए। बहुत बारिश है और पिछले होटल में एक भी खाली कमरा नहीं था। " बारिश में भीगी कमला ने होटल की डेस्क पर ऊंघते बूढ़े आदमी से कहा।

"माफ़ करना बिटिया, यहां पर कोई कमरा खाली नहीं है। सारे कमरे दिए जा चुके हैं। हां सामने बाथरूम है वहां तुम अपने कपड़े बदल सकती हो।" मैनेजर बंसीलाल ने उसे बताया।

" आपका बड़ा उपकार होगा, अंकल। कृपया मुझे कैसे भी एक कमरा दिलवा दें। कोई तो खाली होगा । आप फिर से चेक करिए ना। " कमला ने ज़ोर दे कर विनती करी।

"अरे बिटिया, होता खाली तो में दे ही देता। यहां इसी काम के लिए तो बैठा हूं में।"

"मेरी ट्रेन छूट गई और इतनी बारिश में कहां जाऊंगी। कोई और जगह हो तो बता दीजिए"

"इस छोटे से गांव में अभी ये दूसरा होटल ही खुला है। कई सालों से बंद था अभी इसी महीने खोला गया है। पूरा खोल दिया सिवाय एक कमरे के।" मैनेजर ने कमला को बताया।

"अंकल उस कमरे को ही खोल दीजिए। बस रात ही तो गुजारनी है। कैसा भी है बस दे दीजिए।" मिमयाते हुए कमला हाथ जोड़ आंखो में बड़े बड़े आंसू भर के बोली।

"बिटिया वो कमरा उस रात के बाद कभी नहीं खुला.... " कुछ गहरी सोच में डूबे हुए वो बोल गए और फिर जैसे किसी नींद से जागे हो "कुछ नहीं, बिटिया वो धूल से अटा पड़ा होगा ३ साल हो गए उसे खोले हुए"

"वहीं दे दीजिए ना। ऐसा भी क्या हुआ होगा उस रात की कमरा बंद ही कर दिया हमेशा के लिए"

"हां... क्या... वो .. नहीं.. नहीं...कुछ नहीं हुआ। यहां सब बहुत अच्छा है" कुछ अटकते झिझकते बंसीलाल बोले।

में आपकी बिटिया जैसी ही तो हूं ना , चाचाजी । मेरी मदत करिए ना। एक ही रात की तो बात है। में कैश देती हूं। आप बस उसी कमरे को खुलवा दीजिए।" राहत की सांस लेते हुए कमला बोली।

"बिटिया तुम समझती नहीं हो। उस कमरे में कोई रहता है। वो दिखाई नहीं देता लेकिन किसी और को भी नहीं रहने देता"

"में इन सब बातों में विश्वास नहीं करती। आप बस उसी को खुलवा दीजिए।" समान उठा व्यग्रता से कमला बोली।

"लेकिन बेटी....."
"लेकिन.. वेकिन कुछ नहीं चाचाजी। बस बढ़िया सी चाय पिलवा दीजिए और कमरे की चाबी थमाइए।" चहकती सी वो पुलक गई।

"ठीक है ... ठीक है... जैसी तुम्हारी इच्छा... " कहते हुए बंसीलाल ने चाबियों का गुच्छा उठाया और लाठी उठा कमरा नंबर १३ की और बढ़ गए.....

........…..…..........................................

बड़ी ही सुहानी शाम थी वो। एक दूसरे कि आंखों में खोए विशाल और सुहानी शादी के बाद हनीमून पर निकले थे। ट्रेन जब हिम्मतपुर स्टेशन पर रुकी तो बिना सोचे समझे दोनों यहीं उतार गए। दोनों को ही यहां गांव की सुंदरता ने खींच लिया था। ट्रेन एक मिनट ही रुकी थी। जैसी ही सीटी बजी दोनों ने अपना अपना बैग पकड़ा और बस उतर गए।

दिल को सुकून देती मीठी सी शांति फैली थी वातावरण में। दोनों एक दूसरे को देख मुस्कराए और हाथों में हाथ डाल आगे बढ़ गए। छोटी छोटी पगडंडी और दूर तक फैली शांति। पास ही पीपल के पेड़ पर कोयल की मीठी कुहुक और उसी की डाल पर बंधे झूले पर एक बुढिया माई सुकून से बैठी थी।

" कितनी सुन्दर जगह है। क्युं सुहानी ?? मेरा तो मन यहीं बस जाने को कर रहा है" विशाल ने सुहानी को अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

लज्जाती सुहानी के कपोलों पर लालिमा उतर आई। विशाल की बाहों में सिमटती हुई बोली " हां, मुझे तो शहर की चहल पहल से गांव का शांत जीवन बहुत भाता है। लेकिन फिलहाल मुझे ज़ोर की भूख लगी है। चलो ना कुछ खाने की जुगाड ढूंढ़ते हैं। " कहती हुई वो अपने माथे पर हाथ रख दूर कुछ देखने लगी।

" हां, सच कहती हो चलो पहले कुछ खाते हैं फिर होटल में रुकने का जुगाड करते हैं" यह कह विशाल दोनों बैग को अपने कंधों पर टिकाता आगे की ओर बढ़ता है।

सुहानी उसका हाथ थाम गुनगुनाती हुई आगे बढ़ती है। पेड़ पर पड़े झूले के पास पहुंचते ही वो एक बच्चे सी मचल जाती है। " विशू, रुको ना। एक बार झूला झूलने दो ना।" बड़े प्यार से झूले की तरफ ही देखते हुए विशाल का हाथ कस कर पकड़ रोक लेती है। वहां जाने पर बूढ़ी माई को देख मीठी सी मुस्कान मुंह पर लाती है। बूढ़ी माई भी हंसकर झूले से उतर जाती है। विशाल भी मुस्कुराने लगता है और उसे झूले पर बिठा देता है। ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेते दोनों गुनगुनाने लगते हैं। उनकी मीठी आवाज सुनकर पक्षी भी गुनगुनाने लगते हैं।

"भूख बहुत तेज लग रही है" सुहानी विशाल से कहती है।
"हां हां तुम ही झूल रही हो चलो ना कुछ खाने को देखते हैं" विशाल जवाब देता है।

दोनों अपना-अपना बैग कंधे पर टांग आगे बढ़ते हैं। पास से ही एक बैलगाड़ी गुजर रही थी उन्हीं भैया जी से पूछते हैं "आसपास कहीं कोई होटल होगा।"
"हां हां भैया जी पास ही नया होटल खुला है, चलिए मैं ले चलता हूं।" और गाड़ी वाला उन्हें बैठा लेता है और पास के ही होटल पर छोड़ देता है।

"यह तो बड़ा साधारण सा है, है ना विशु" सुहानी होटल की तरफ देखते हुए कहती है।
"इस गांव में होटल मिल गया यह क्या कम है चलो पहले कुछ खाते हैं"
दोनों अंदर गए और दो प्लेट खाना ऑर्डर कर दिया।
"वाह खाना तो बहुत ही टेस्टी है।"
" ऐसा खाना तो मैंने बचपन में दादी के हाथ से खाया था। बिल्कुल दादी के प्यार भरा खाना लग रहा है। अरे विशू यह आचार तो खा कर देखो कितना स्वादिष्ट है।" दोनों हंसते मुस्कुराते खाना चट कर गए।

खाना खाने के बाद दोनों मैनेजर के पास पहुंचे।
"कोई कमरा मिलेगा भाई साहब। "
बूढ़ा मैनेजर अपनी आंखों पर ऐनक चढ़ाकर अपने रजिस्टर से आंखें उठा उनको देखता है "हां बेटा बिल्कुल, यहां कमरे बहुत खाली हैं, कोई आता ही नहीं। आज बड़े दिनों बाद तुम लोग दिखाई दिए हो लगता है रास्ता भूल गए हो। कहो ना कैसे आना हुआ यहां हमारे हिम्मतपुर में?" मैनेजर ने सवाल करा।

"अरे अंकल हमें तो बस यहां की खूबसूरती खींच लाई। ट्रेन यहां से गुजर रही थी, स्टेशन पर जब रुकी तो बस अपने आप को हम रोक ना पाए और हम लोग यही उतर गए। हम लोग हनीमून पर निकले हैं ना।" शरमाते हुए विशाल ने सुहानी की ओर देखा सुहानी भी लजा गई।

"अच्छा-अच्छा जुग जुग जियो। हमारा गांव है ही इतना सुंदर हर किसी का मन मोह लेता है देखना तुम्हें बहुत सुंदर लगेगा । आओ तुम्हारे रहने की व्यवस्था करवा देता हूं। भोलू कमरा नंबर 13 खोलना जरा।"

भोलू आता है और उनके दोनों  बैग को अपने कंधों पर टांग लेता है चलिए बाबूजी आप का कमरा खोल देता हूं और तीनों कमरा नंबर 13 की ओर बढ़ते हैं।

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" देखो विशू कितना सुन्दर नज़ारा है ना यहां से। वो सामने गेंहू का खेत और उसके पास में वो कुआं। पेड़ पर कपड़े का झूला और इतने सारे पक्षी। । ज़िन्दगी ऐसी ही होनी चाहिए .... शांत। है ना?" सुहानी ने अंगड़ाई लेते हुए खिड़की के बाहर झांका।
" हां सच कहती हो" सुहानी के गालों को चूमते हुए शरारत से विशाल बोला। " इतनी सुन्दर जगह है। चलो अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी की शुरुवात भी यहीं से करते है।" आंख मारते हुए सुहानी को अपनी बाहों में भर लिया।

शाम घिर आई थी, पंछी अपने अपने घर लौटने लगे थे। दूर कहीं सूरज को भी शितीज ने अपने आगोश में ले लिया था। धीरे धीरे खिड़की के बाहर से झींगुर के गाने सुनाई पड़ने लगे थे।
दोनों एक दूजे में खोए बेखबर थे कि आइने के पीछे से दो आंखें उन्हें घूर रही थीं।

अचानक सुहानी को बड़ी बेचैनी सी महसूस हुई। विशाल को जगाते हुए बोली " विशू .. विशू.. उठो ना। चलो बाहर चलते हैं थोड़ी देर के लिए। ना जाने क्यूं मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा।"
"क्या?? क्या हुआ सुहानी? तबीयत तो ठीक है ना" विशू ने चिंतित हो उसके माथे पर हाथ रखते हुए कहा।
" अरे बाबा में ठीक हूं। बस बेचैनी सी हो रही है। शायद बंद कमरे कि वजह से। थोड़ा खुली हवा में टहल लेते हैं तो अच्छा लगेगा। और फिर खाना भी तो खा लें। "
" हम्म, भूख तो अब मुझे भी लगने लगी है। चलो पहले थोड़ा टहलते है फिर खाना खा कर वापिस आएंगे। स्वीट डिश भी तो खानी है" शरारत भरी निगाहों से सुहानी को देखते हुए विशाल बोला।
उसकी बात का आशय समझ सुहानी लज्जा गई।

दोनों ने कपड़े बदले और बाहर निकाल गए। बाहर सचमुच बहुत ही सुन्दर नज़ारा था। आसमां में दूधिया चांद सितारे जड़ित चुनरी में पारिजात को महका रहा था। हवा में उड़ती भीनी भीनी खुशबू सुहानी को मदहोश कर रही थी।
विशाल भागता हुआ सड़क किनारे पहुंच गया। वहां से किसी जानवर के मिम्याने की आवाज़ आ रही थी। नरम दिल वाले विशाल की आंखों में आसूं आ गए। झाड़ी में से किसी तरह उस कुत्ते के नन्हे बच्चे को बाहर निकाला। खून से लथपथ पिल्ला दर्द से तड़प उठा। सुहानी भी भागती हुई वहां पहुंच चुकी थी। उसने झट से अपनी पानी की बोतल खोली और उसके ढक्कन में पानी डाल पिल्ले के मुंह में डाला। पिल्ले को थोड़ा सुकून मिला।
दोनों ने मिलकर उसके जख्मों को पानी से धोया, फिर सुहानी ने पर्स से बिस्कुट निकाल पानी में भीगा कर उसके मुंह में डाला। वो खुश हो अपनी पूंछ हिलाने लगा। इतने में ही दूर से उसकी मां की आवाज़ सुनाई दी। वो भागती हुई वहां पहुंची। जब अपने बच्चे को खुश देखा तो वो भी निश्चिंत हो गई। पूंछ हिलाती पास आ कर प्यार से उसको चाटने लगी और फिर विशाल सुहानी की तरफ देखा  मानो उनका शुक्रिया अदा कर रही हो। दोनों पिल्ले को उसकी मां के पास छोड़ वापिस होटल की तरफ चल दिए।

तभी पास के ही पीपल के पेड़ पर बैठा उल्लू चीखता हुए वहां से उड़ गया।

.......................... शेष अगले भाग में.....



Thursday, February 4, 2021

दोनों दुनियां





अनुज घर से बुझे मन से निकला। स्कूटर स्टार्ट करने के लिए किक मारा लेकिन वो निर्मोही भी स्टार्ट ना हुआ। थोड़ी देर उसपर अपना गुस्सा निकालते , खीजते हुए दो चार किक और मारे तो घिघियाता हुए सा काला धुआं छोड़ वो आखिर चलती सांसे लेने ही लगा। स्टैंड से उतार उस पर बैठ आगे बढ़ा ही था कि एक ईंट पहिए के नीचे आ गई और स्कूटर डगमगा गया।

ठीक उसकी ज़िन्दगी की तरह। लेकिन उसकी ज़िन्दगी में ईंट नहीं आयी बल्कि पूरी की पूरी ज़िन्दगी ही आ गई हो जैसे।

कितना खुश था वो उस दिन जब घर वालों ने उसके लिए एक सभ्य घर की लड़की को पसंद करा था। महिमा, देखने में बिल्कुल साधारण थी, और कोई खास शिक्षा भी नहीं प्राप्त करी थी। बस बड़ी मुश्किल से बात पक्की हो पाई थी।

दूसरी ओर अनुज भी सीधा साधा सा था, एक छोटी सी दुकान थी आर्टिफिशियल ज्वेलरी की पुराने शहर में। पिता उसके जनम से पहले ही दूसरी दुनिया में जा चुके थे। एक छोटी बहन थी जिसकी जिम्मेदारी भी उसी के कंधो पर थी।  माँ ने जैसे तैसे, छोटे मोटे काम कर बड़े जतन से अपने बच्चों को पाला था।

तीस वर्ष का हो चला था, बहन की शादी एक अच्छे घर में कर दी थी। अब मां का मन था कि अनुज का घर भी बस जाए। घर की हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी सो कोई लड़की भी नहीं मिल रही थी। अब जा कर बात महिमा से पक्की हुई थी।

शादी खूब धूम धाम से करी गई। बड़े ही नाज़ से मां ने बहू का स्वागत करा। लेकिन यह क्या, महिमा ने आते ही सास से कहा कि उसे नए कंगन चाहिए। अनुज से पहली ही रात बोली "अपनी हद में रहना, नहीं तो तेरी  मां के हाथ पैर तोड़ दूंगी। सुबह मेरे से उम्मीद नहीं करना की चाय बनाऊं। जल्दी भी नहीं उठ सकती में। जब उठूं तब मुझे चाय देना और खाना भी खुद ही बनाना। मेरे नाज़ुक हाथ खराब हो जाएंगे इसलिए बर्तन कपड़े तो बिल्कुल नहीं धो सकती।"

अनुज अवाक रह गया। एक ही पल में सब सपने तार तार हो गए। बस वो दिन था और आज का दिन, चकरघन्नी की तरह महिमा के पीछे दौता रहता है। लेकिन ना जाने उसे क्या चाहिए वो किसी भी तरह खुश नहीं होती है। बात बात पर मां को गंदी भद्धी गालियां देती, वो कुछ कहता तो लात घूंसे उसे ही जड़ देती। फिर धमकी देती "थाने में बंद करवा दूंगी। दहेज मांगते हो कह कर जेल भिजवा दूंगी। में लड़की हूं , मेरी बात पर सब को यकीन होगा" उसके मां बाप भी अपनी बेटी का साथ दे कई बार अनुज को गुंडों से पिटवा भी चुके थे। वो कहते घर, और ज़ेवर उनकी बेटी के नाम का दो नहीं तो ज़िन्दगी दूभर कर देंगे।

उधर मां, अनुज को शांत करती की रहने दे। "जो चाहे उसे बोल लेने दे। तू भी उ से डांटेगा या फटकरेगा तो तेरी शिक्षा क्या कहेगी" वो मन मार कर अपमान का घूंट पी कर रह जाता। किस से अपने दिल की बात कहे समझ ही नहीं पाता। दुनिया तो उसे ही कहेगी की मर्द है संभाले बीवी को। लेकिन कैसे? वो हाथ उठाए तो कैसा ज़ुल्मी मर्द। सब सह जाए तो डरपोक। कैसी दुविधा है। कहां जाए। क्या करे किस से कहे कुछ समझ नहीं पाता।

पहिए के नीचे आती ईंट की तरह बस तिलमिला कर रहा जाता। सुबह मिश्री सी मीठी गालियों का बक्सा संजोए घर से निकला था जब वो ईंट की वजह से गिरते गिरते बचा। आगे लाल बत्ती , हरी हुई तो वो चला ही था कि अचानक, लाल बत्ती तोड़ती, सामने से तेज़ आती कार ने उसके स्कूटर को टक्कर मार हवा में उछाल दिया।

वो इतना तेज़ झटका था कि वो उस हवा में उछाल कर हवा ही बना गया। उड़ता हुआ पहुंच गया सतरंगी दुनिया में। यह कौन जगह है? कानो में मीठी शहनाई सी बजने लगी। चारों ओर सुरीला संगीत व मनमोहक खुशबू फैली थी। रंग बिरंगे फूलों से हर कोना सजा था। उसकी नजर क़दमों पर गई तो यह क्या वो तो बादलों पर खड़ा था। नीचे बहुत नीचे उसका बेजान शहीर खून से लथपथ पड़ा था। भीड़ ने चारो और से घेरा हुआ था।

लेकिन वो अब जहां खड़ा था वो इतना सुन्दर व सुकून भरा था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं करी थी। इतने वर्षों बाद आज उसे शान्ती मिली थी।

🙏ॐ शान्ती🙏