Thursday, August 31, 2017

दस्तक

आज दिल फिर धक धक कर रहा है
उस काले दिन की याद ताजा़ कर रहा
जब दऱवाजे़ की एक दस्तक में
जीवन का सूरज डूबा था
मुसकराने का हर मकसद टूटा था

एक स़दूक में भरा पूरा आंसमान था
वो टूटा फोटो फ्रेम
फटी जेब वाली पतलून
सीने पर लाल दाग वाली बुर्शट
तिरंगे में आँख मूंदे लिपटी उसकी टूटी ज़िदंगी
लौट आई थी उसके पास हमेशा के लिए
सूनी रातों को और सूना कर गई
रंगीन ख्वाबों को बदरंग कर गई थी


वो वतन की मिट्टी माथे से लगा
ढेंरों आँसू दिल में बसा
उस तमगे को सीने से लगा
जीने का मकसद ढूँढ रही थी

फक्र से अपने लाल को भेजा था फिर
उसी मिट्टी का कर्जं उतारने अभी कुछ दिन पहले


आज दिल फिर धडक रहा जो़र से
बेवक्त दरवाजे़ पर फिर दस्तक हुई है
उफ्फ... फिर दस्तक हुई है.....।

~31/08/2017~

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Friday, August 18, 2017

माँ सुन लो पुकार मेरी



माँ ये क्या हो रहा है
मेरे सारे दोस्त
जो सिर्फ हसंना या रोना जानते थे

कहाँ गुम हो गये हैं
एक के बाद एक
मासूम किलकारियाँ
किन अंधेरों में खोती जा रही हैं
क्या कसूर हे उनका
कितनी खुशियाँ लाए थे
कितने घर के दीपक जलाऐ थे
वो सारे दीपक क्युँ बुझ गये
क्युँ सारे पालने सूख गए

साँस भी क्या इन दरिंदो से पूछ कर लें
क्युं ये हिसाब रख रहे हमारी साँसों का
क्युँ दम घुट रहा बेज़ुबानो का

कोइ तो बचा लो मुझे
माँ तुमहीं आ जाओ
अपनी गोद में छुपा लो
मैं भी जीना चहाता हूं
इंद्रधनुशी सपने देखना चहाता हूं
इतनी जलदी अंधेरों के हवाले मत करो
उन सफेदपोशो का क्या
नोटों की गढ्ढी का परदा डाल आऐंगें
हमारी गुमसुम आवाज़ को दफना देंगें
अपना दोश किसी और के नाम मण
फिर ऐशो अराम से जीते रहेगें
हमें कौन बचाऐगा...... माँ।


-16/08/2017-

#GorakhpurTragedy



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Sunday, May 14, 2017

माँ

क्या शुभकामनाऐं दूं
सोचती बैठी में

क्या सिफ्र एक ही दिन तेरा
माँ तू तो हर रोज़ माँ है
तेरा प्रेम निछल है
हर फूल को समान रस है

तू यहाँ रहे न रहे
तेरा प्रेम अजर अमर है

यूं ही सदा मुसकराते रहना
अपने फूलों को संभाले रखना
अपने आंचल कि खुशबु से
सबका जीवन महकाए रखना।

-14/05/2017-



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Wednesday, May 10, 2017

सपने

जिंदगी की हसीन भोर 
खिलखिलाहटों में कब 
बीती कहां खबर

यूं हीं बीते आती
सांछ भी हमारी
मुसकराहटों तले

इक दूजे के सपने
अखियों में बसा
कर लें जीवन पार पथ।




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Monday, May 8, 2017

बिन तेरे

बिन तेरे फीकी लागे
चाय की चुसकीयां
बदरगं लागे 
फूलों की कलियां

झूले के सूखे झोंके
केश उडाऐं हौले हौले
अखियां तरसें तेरे लिये
आजा साजन जल्दी से

बेजान सी बाहें
करें इतंज़ार तेरा
सूनी सेज सजा़ जा
जुलमी साजन आ जा


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Friday, January 6, 2017

पल



पल पल में पल की क्या बात करें
जी लो अब इस पल में
कौन जाने ये पल फिर नसीब हो न हो

क्या सोचें बीते पल का
क्या करे इंतज़ार अगले पल का
जो है वो बस यही पल है

खुशियां समेटें इस पल में
खिलखिला ले बस इसी पल में
किसने देखा अगला पल है

आओ कुछ प्यार समेटे
आओ कुछ प्यार लुटाएं
जी भर के जी लें  इस पल में

ये पल ही तो जीवन है
ये पल ही तो जीवित है
ये पल ही तो सार है

~०६/०१/२०१७~


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