Friday, December 28, 2018

वक़्त का पिटारा

गुज़रे वक़्त का पिटारा खोला है
बेतरतीब पड़े लम्हो को
समेटने का विचार किया है

यादों की तह के बीच से
कुछ चमकते सिक्कों से सपने मिले हैं
बाँहें पसार मुझे आगोश में लेने को बेचैन हैं

वहीँ कोने में पड़ा यादों का उलझा गोला मिला है
हाथ से उठा उसीसे ठिठुरती
ज़िन्दगी का हिसाब लिया है

कुछ कड़वी बातों की गठरी भी सहेजे  हुए थी
आज  बाहर निकाल फेंकने का
इरादा बुलंद करा है

नीचे दबे ख़याली उम्मीदों के खाली डब्बे भी जगह घेर रहे हैं
क्या  काम उनका यहाँ
चलो उन्हें भी बाहर फ़ेंक दिया जाये

गुड़ मुड़ पीले पन्नों सी मुस्कराहट दुबकी बैठी थी
चमकती धुप दिखा कर
आज उसे फिर ओढ़ लिया है

वक़्त का पिटारा आज फिर खोल लिया है
साफ़ सुथरा कर
नए रंगों को रास्ता दिया है




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