Monday, August 19, 2019

सब रब दी मर्ज़ी

Related image
image from net

राजा महेष्वती के दरबार में अनेकों बुद्धिजीव थे।  उनमे से एक दरबारी हमेशा हर बात पर "प्रभु इच्छा - सब उसके हाथ में है " कहता था।  तो वहीँ दूसरी ओर दूसरा दरबारी कहता था "जो राजा की इच्छा - सब उसकी मेहर है "
राजा के लिए दोनों ही प्रिय दरबारी थे परन्तु हमेशा सोचता की किसके शब्द सच्चे हैं। वो हमेशा यही जाने की कोशिश करता की आखिर सच क्या है ? क्या प्रभु इच्छा सबसे बड़ी है या खुद उसकी इच्छा। इस सवाल का हल ढूंढ़ने का उसे एक तरीका मिला।  उसने तुरंत दो कद्दू लाने का हुक्म दिया।  एक को बड़ी सावधानी से कटवाया और उसे खाली कर उसमे हीरे जवाहरात भर दिए और फिर उसे ठीक पहले की तरह ही जुड़वा दिया। और दुसरे कद्दू को वैसा ही छोड़ दिया। 
अगले दिन, राजा ने दोनों बुद्दिजीव दरबारियों को बुलवाया और साधारण कद्दू 'प्रभु इच्छा' कहने वाले को दे दिया और दूसरा हीरे जवाहरात वाला "राजा इच्छा ' कहने वाले को प्रेम और आदर के साथ दिया। दोनों अपने अपने कद्दू अपने साथ घर ले गए। 
दुसरे दिन दरबार लगा और राजा ने दुसरे वाले दरबारी से उसके कद्दू का स्वाद पुछा।  दरबारी इधर उधर बगलें झांकने लगा।  फिर कुछ देर पश्चात उसने अपनी गलती स्वीकार करते हुए क्षमा मांगी और कहा "हुज़ूर माफ़ कीजियेगा घर पर बहुत सारे कद्दू हमारे ही खेत के थे सो मैंने आपके उपहार को बाजार जा कर बेच दिया।  मुझसे गलती हुई आपके स्नेह से दिया हुआ उपहार मैंने बेच दिया मुझे माफ़ कर दीजिये "
राजा ने माफ़ करते हुए हुक्म दिया की जाओ जा कर उस सब्ज़ी बेचने वाले को ले कर आओ जिसने उसे खरीदा था। उनके आदेश को मानते हुए तुरंत दो सिपाही उस सब्ज़ी वाले को दरबार में ले कर आ गए। 
"घबराओ मत।  हमे सिर्फ इतना बताओ वह कद्दू किसको बेचा है " राजा ने डर से कापंते हुए सब्ज़ी वाले से पुछा। 
"महाराज उसकी बनावट इतनी सुन्दर थी की अच्छे दाम दे कर कपडे का व्यापारी उसको पूजा के लिए ले गया "
"उस व्यापारी को पेश करा जाये " राजा ने फिर आदेश दिया। 
दरबारी उस व्यापारी को पकड़ कर लाये और उससे भी वही सवाल करा। उसने बताया की उसने गृह शांति के लिए पूजा करवाई थी इसलिए उसने अपने पुजारी को वह दान में दे दिया है। 
"तो ठीक है उस पुजारी को यहाँ हमारे समक्ष आदर समेत लाया जाये "
"अरे महाराज कहीं जाने की ज़रुरत नहीं है क्यूंकि पुजारी जी तो पहले से ही हमारे बीच में मौजूद हैं। " व्यापारी बोला। 
"अच्छा ! पुजारी जी कृपा हमारे सामने आइये " खुश हो कर महाराज ने आग्रह करा 
तुरंत उनके समक्ष वो बुद्धिजीव आ गया जिसको उन्होंने साधारण कद्दू उपहार में दिया था और जो हमेशा हर बात पर "प्रभु इच्छा" कहता था। 
वो मुस्कारते हुआ बोला "हाँ महाराज दान में मुझे ही इन्होने कद्दू दिया था।  और जब मेरी पत्नी ने पकाने के लिए उसे काटा तो देखा की वो तो हीरे जवाहरात से भरा हुआ था। प्रभु की लीला तो अप्रमपार है " 
राजा की आँखे खुल गयी और वो उस पुजारी के समस्त नतमस्तक हो गए।  दूसरा दरबारी जो राजा को अपना दाता मानता था वो भी उसके चरणों में गिर गया और क्षमा मांगते हुए बोला "मेरी आँखे खुल गयी आज।  प्रभु से बड़ा कोई दानी नहीं है इस पूरे संसार में।  जो जिसके भाग्ये में है उसे कोई छीन नहीं सकता और जो नहीं है वह पा कर भी पा नहीं सकता "
सब उसकी महिमा है।  हम सब आपके सामने नतमतस्तक हैं प्रभु हमे अपने प्रेम से यूँ ही संभाले रखना। 
"जय जय जय हो महा प्रभु की।  सब रब दी मर्ज़ी है। 
बिस्वासी हवै हरि भजय, लोहा कंचन होय
राम भजे अनुराग से, हरख सोक नहि दोय।
जो हरी का नाम पूरी श्रद्धा और आस्था से लेते हैं उनके लिए लोहा भी सोना बन जाता है 
जो राम नाम भजते हैं उनको सुख दुःख सामान लगते हैं। 

~ १९/०८/२०१९~ 
©Copyright Deeप्ती

Friday, August 16, 2019

कृष्णा कथाएं - 2

Image result for krishn quotes in hindi
Image from Net




कृष्ण, कनहिया, गोविन्द, गोपाल, माधव, देवकीनंदन , यशोदानन्दन , नंदलाल ऐसे ही अनेको नाम से जानने वाले माखन चोर अपने सभी गोपियों के प्रिय थे।  नटखट और चंचल अपनी मधुर मुस्कान से सबका मन मोह लेते थे।  उनकी बाल लीलाएं देखने के लिए गोपियाँ झूठ-मूठ शिकायते ले कर आती थी बस उनकी एक झलक पाने भर से भाव विभोर हो जाती थीं।

अपने बालकाल में अनेकों लीलाएं उन्होंने अपने भक्तों को दिखाई थी।  आज उन्ही में से एक लीला यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।

देवराज इंद्र अपनी ताक़त के गुरूर में चूर होने लगे थे।  वे समझते थे की वर्षा की ताक़त उन्हें सभी देवताओं से अधिक शक्तिशाली बनाती है।

इसी अभिमान में चूर एक बार देवराज इंद्र ब्रज के लोगों से क्रोधित हो गए। उन्होंने देखा की कृष्ण भक्त भक्ति में डूब सिर्फ कृष्ण के कहने पर गोवेर्धन पर्वत को पूजने लगे हैं।  लेकिन पर्वत से ज्यादा शक्तिशाली तो इंद्र खुद हैं। फिर कैसे बृजवासी उन्हें महत्त्व नहीं दे रहे , उनकी पूजा नहीं कर रहे हैं बल्कि गोवेर्धन पर्वत की कर रहे हैं।

क्रोध की अग्नि से जलते हुए बृजवासियों को दण्डित करने का प्रण करा। और बस घनघनाते , उमड़ते घुमड़ते घनघोर बादलों की टुकड़ी को ब्रज भूमि पर भरपूर बरसने का आदेश दे दिया। वे इतना बरसना चाहते थे की लोग घबरा कर उन्हें पूजने लग जाये।  बाढ़ आ जाये और सब खेत खलिहान , घर, चौपाल सब पानी में डूब जाये।

उनके आदेश का पालन करते बादल वृन्दावन के ऊपर एकत्रित हो गए और जम कर बरसने लगे।  इतना बरसे की बाढ़ की स्तिथि उत्पन हो गयी। गांववासियों के घरों में पानी भर गया और वे डूबने लगे। कुछ समझ में ना आने की स्तिथि में सब दौड़ते हुए कृष्ण के पास पहुंचे और उनसे मदद मांगी।

कृष्ण पहले से ही सब जानते थे की इंद्रा देवता क्यों रुष्ट हो गए हैं।  वे ये भी जानते थे की रुष्टता का कारण उनका खुद का घमंड था। इसका उन्हें ज्ञात कराना बेहद आवश्यक था।

"ज़िन्दगी में कभी अपने हुनर पर घमंड मत करना
क्यूंकि जब
पत्थर पानी में गिरता है तब
अपने ही वज़न से डूब जाता है "

कृष्ण ने सब भक्तों की प्रार्थना स्वीकार कर ली और सबको गोवेर्धन पर्वत के नज़दीक बुलवा लिया।  फिर बहुत ही आसानी से अपने बाएं हाथ की छोटी ऊँगली पर पूरे विशाल गोवेर्धन पर्वत को उठा लिया।  और एक बड़ी विशालकाई छतरी सी बना ली।  उस छतरी के नीचे सभी पशु पक्षी व ग्राम वासी सुरक्षित खड़े हो गए।

उनके इस चमत्कार को देख सब भाव विभोर हो गए और सब तरफ कृष्ण की जय जयकार गूंजने लगी।
भगवान कृष्ण की भक्ति और शक्ति देख इंद्र के बादल भी नतमस्तक हो गए और सब एक एक कर वापिस इंद्र लोक चले गए।  इंद्र का भी घमंड चूर चूर हो गया और वे भी कृष्ण की महिमा जान गए।

तो सब प्रेम से बोलो बांके बिहारी लाल की जय !
नन्द लाल की जय !
श्री कृष्ण की जय !

~ १६/०८/२०१९~ 
©Copyright Deeप्ती

Wednesday, August 14, 2019

कृष्ण कथाएं - १




"वर्तमान परिस्थिति में जो तुम्हारा कर्तव्य है, वही तुम्हारा धर्म है।"

कृष्ण सबके चहेते नटखट बाल गोपाल सबके मन को बहुत भाते हैं।  उनकी अनेकों बाल लीलाएं हमारे मन में   छाप छोड़ जाती हैं।  उनके जन्म से ले कर उनकी परम धाम की यात्रा तक सैकड़ों कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं। आज उन्ही की बाल कहानियों में से एक कहानी ले कर आयी हूँ।

गोकुल बहुत ही समृद्ध और खुशहाल गाँव था।  माखन चोर नन्द लाल जो वहां रहते थे।  उनकी एक मुस्कराहट पर सब निहाल हो जाते थे।  गांववासी के साथ साथ वहां के पशु-पक्षी , पेड़ , नदी , पहाड़ सब झूम जाते थे।

"आयो जी नटखट नंदलाला 
गोविंदा ब्रज का बाला "

वही पर यमुना नदी  से जुड़ी हुई एक मीठे पानी की सुंदर झील थी। जिस के पानी से सब अपनी प्यास भुझाते थे। एक दिन ना जाने कहाँ से एक कालिया नाम का बहुत ही जहरीला सांप अपनी पत्नी के साथ वहां आकर रहने लगा। कालिया का जहर यमुना नदी के पानी में बहुत तेजी से घुलने लगा और पानी जहरीला होने लगा था।

एक दिन की बात है, एक गाय चराने वाला वहां आया और जब उसने झील का पानी पिया तो पीते ही वो मुर्षित हो गया और उसकी मृत्यु हो गई।
पास ही के कुछ चरवाहों ने ये खबर नन्द महाराज को जा कर दी। वही खेल रहे गोविन्द ने जैसे ही सारा वृतांत सुना फ़ौरन नदी तट पर पहुँच गए और अपने प्रताप से उस व्यक्ति को जीवित कर दिया।

तत्पच्ताप,  श्री कृष्ण उस झील में कूद गए। वे पानी के बहुत अंदर तक पहुँच गए गए और उस सांप को जोर-जोर से पुकारने लगे "क्यों निर्दोष लोगो की जान ले रहे हो कालिया।  बाहर निकलो और मेरे साथ युद्ध करो "

उधर बाहर जब बहुत देर तक कृष्ण पानी से नहीं निकले तो गांव के लोग इकट्ठा होकर नदी किनारे उनका इंतजार करने लगे। माता यसोधा का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया था।  वे यही सोच कर चिंतित थी की ना जाने इतने विषैले सर्प से कैसे बचेगा उनका लाल।

पानी के अंदर, कालिया सांप कृष्ण के सामने आया और उनपर आक्रमण कर दिया। विशालकाय सर्प ने उन्हें जकड लिया था।  लेकिन कुछ ही देर बाद कृष्ण ने कालिया को जकड़ लिया और उसके सर पर चढ़ गए। कालिया के हजार सिर थे। कृष्ण उसके सर हो सवार हो तेजी से नाचने लगे।  उनके नाचने के कारण कालिया का मुख खून से लथपथ हो गया। यह देखकर कालिया की पत्नी वहां आई और अपने पति के जीवन की भीख मांगने लगी।

नरमदिल कृष्ण ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन दोनों से यमुना नदी की झील छोड़ कर जाने को कहा।

"में जानता हूँ की तुम्हारी रचना एक विषैले जीव के रूप में हुई है।  इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं।  लेकिन अनजाने में तुम्हारा ये विष मेरे गांव वासियों को मृत्यु के नज़दीक ले जा रहा है। इसलिए मेरा निवेदन है की आप यहाँ से रामानका द्वीप चले जाएँ ।"

इतना ही नहीं, कृष्ण ने कालिया को आश्वासन भी दिया कि अब उन पर गरुड़ कभी भी आक्रमण नहीं करेगा क्योंकि उनके नाचने की वजह से, कालिया के सिर पर उनके पैरों के निशान बन गए थे।

यह सुनकर कालिया बहुत ही खुश हुआ।  कालिया और उसकी पत्नी ने प्रभु को नमन करा और यमुना नदी की उस सुंदर झील को छोड़कर चले गया।

पूरा गाँव हर्षो उलाहस से भर गया क्यूंकि कृष्ण ने उन सब की कालिया सांप से रक्षा करी थी।

"मान, अपमान, लाभ-हानि खुश हो जाना या दुखी हो जाना यह सब मन की शरारत है ।"

बोलो बांके बिहारी की जय !


~ १४/०८/२०१९ ~
©Copyright Deeप्ती