शत विशिप्त सा हुआ
लहू लुहान अंग अंग मेरा
मन में उमंग जीवित है
में देश का रक्षक हूं
घुसपैठिए को मार भगा दूं
आंख लहूलुहान कर दूं
मेरी मां पर नजर जो बुरी डाले
में रक्षक हूं आन का
सिर चाहे काट ही दो
शान से सिर उठा में जियुं
तमगो की ना चाह मुझे
में तो बस रक्षक हूं
लौट आऊंगा ज़रूर में
चाहे चल के पैरों पे
या ही आऊं बक्से में
में रक्षक ही रहूंगा
चाहे यादों में रहूं ना रहूं
खत्म कर दुश्मन को
में अपनी नजर में ज़िंदा हूं
हां हां में रक्षक हूं।
....30/04/2021...
©Deeप्ती