Monday, September 16, 2019

अल्फ़ाज़



कुछ ख्यालों के ताने बाने
बिखरे थे कलम के ज़रिये
पहुंचे शुष्क पड़े पन्नो पे
पिरो रहे थे माला सी

एक के बाद एक
कई फ़साने को जोड़ तोड़
भरा खज़ाना शब्दों से
खोल उन्ही पन्नो को जब देखा
झाँक रहे थे सब मुस्काते

जैसे कह रहे हो
"देखा! कैसे चमक रहे हैं
अफ़साने अपने गढ़ रहे हैं
हम ही तो है तेरे वो ख्याल
जो ना जाने कब से सिमट रहे हैं"

शर्मा के हाथ बढ़ाया
हाँ! आज मिली है मंज़िल उन्हें
अरमानो ने पंख लगा
आज देखा है उन्मुक्त गगन।

~ १६/०९/२०१९~

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