Friday, June 12, 2020

खयाली व्यंजन

एक शाम झूले पे बैठ 
चाय की चुस्कियों के बीच
मन ने विचार करा
खाना क्या बनाया जाये
क्या पकाया जाये 
और टेबल पर परोसा जाए

दिमाग के सफ़ेद काले घोड़े 
हर कोने में थे दौड़ाए
खोल पिटारा उम्मीदों का
व्यंजन कई ढूंढ निकाले
अब आयी बारी पकाने की

बस खयाली कढ़ाई निकाली
कुछ सपनो सी खिली 
रँगीन सब्ज़ियां टटोली
तेज़ धार कर कलम की
छोटे छोटे टुकड़ों में 
काटी बड़ी करीने से

ढून्ढ रही मन की बगिया में
हरियाली ख्वाबों से
कुछ पत्ते धनिया और पुदीना के
आज सजाऊंगी उनसे ही
सुन्दर रूप उनका बनाऊँगी

अतीत की अलमारी में
धूमिल पड़े थे कुछ मसाले
उन्हें भी निकाल बाहर 
मिला दिए सब्ज़ी में
स्वाद कुछ तो निखरेगा
ऐसा मैंने सोचा था

फिर प्यार की चला करछी
नरम आंच पे थी सेंकी
गर्म गर्म बादल सा धुआं
उड़ रहा, उसमे से था
सौंधी खुशबु से महकी पूरी रसोई

अब बारी थी सपनो की
सजीली तश्तरी निकालने की
ओढ़ चुनरिया लाज की
पीछे कोने में वो बैठी थी
हाथ बढ़ा, बड़े जतन से
खींच ही लिया उसे सामने

शब्दों की मसालेदार सब्ज़ी
हो गयी थी अब तैयार
रंगीले सपनो में सजी
चटपटे मसालों से भरी
परोसी गयी थी सबके सामने

व्यंजन वाकई बेमिसाल था
क्यों न होता भला, आखिर
शब्दों का मिश्रण था
रंग और प्रेम से भरपूर था
स्नेहिल माँ के लाड सा
ऐसा उसका स्वाद था

-12/06/2020-

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Monday, June 8, 2020

बँसी की धुन



अक्सर मेरी निगांहें
उस पुल के नीचे बैठी उस 
शांत सौम्य औरत 
पर जम जाती थी
जब भी मेरी गाडी उस मोड़ 
पर पहुँचती थी।

कितनी निश्छल और शांत थी वो
प्लास्टिक की पन्नी वाली छत
एक मैला कुचैला सा बिछोना
पास में एक मिट्टी की मटकी
एक पोटली में कुछ सामान
हाथ में एक नन्हा बालक
और एक बाँसुरी

यही थी उसकी सम्पूर्ण दुनिया
उसकी मीठी बांसुरी की तान में
मैं अपनी सुधबुध खो देती थी
भरी दुपहरी में आत्मा को झंजोरता
शीततला भरता उसका स्वर
जैसे कृष्ण के चरणों के दर्शन कराता

वो मीरा सी बस अपनी बंसी
की धुन में खोयी रहती थी
उसका बालक भी बड़ा धीर 
नन्है नन्है कदमो से ठुमकता
आती जाती भीड़ का मन बहलाता
दो चार आने जो मिलते उसी से
अपना गुजर बसर करते थे

सामने बत्ती हरी हो गयी थी
मेरी गाडी धुल उड़ाती
वहां से आगे बढ़ रही थी
लेकिन उसकी मुरली
की मधुर तान मुझसे
यूँ लिपट गयी थी मानो
पुष्प की खुशबु अपने पुष्प से

उनकी सादगी और सरलता देख
मेरा मन हिलोरे खाता
कितनी सहज है ना 
जीवन की यह नैया
बस प्रभु भक्ति में हो विलीन
छोड़ो अपने रात और दिन

पेट भरने लायक 
करवा ही देते है 'वो' जुगाड़
फिर किस बात की होड़ है प्यारे
क्यों परेशान करते अपना मन
भावपूर्ण जीवन
जो भरा हो भक्ति रस से
सम्पूर्ण है अपने आप में।
-08/06/2020-

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