हवा की परछाई
दौडूँ भागूं पकड़
ना पाऊँ
मुट्ठी में चाहूँ
करना बंद
सन्नाटों की आवाज़
कर ना पाऊँ
सुन री हवा
अपने कान इधर ला
सुना दूं आज
अपने सारे राज़
कैसे उस दिन
चोरी से देखा
भँवरे को फूलों से
रस चुराते
उचक उचक कर
ऊँची टहनी के घोंसले
से नन्ही चिरैया को
पंख पसारते
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