तुम वहां दीवार से सट कर खड़े थे
होठों पर हल्की मुस्कान लिए
मुझे ही निहार रहे थे
कहो ना प्रिय
मन की बातें मुझसे
कुछ ना रखो दिल में
हर भावना बह जाने दो
में भी बैठी थी नदी किनारे
करती तुम्हारा ही इंतजार
कैसे पहला कदम बढ़ाती
मन की बगिया पुलकित थी
कहो ना प्रिय
खोल दो राज उस मुस्कान के पीछे
धड़कन बढ़ने लगी है
कुछ सुनने को तरसी हैं
ख्वाब में ही सही
हुई तो मुलाकात हमारी
शब्दों ने ना लिया रूप
दिल ने फिर भी हर बात समझी
©Deeप्ती
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