सड़को पर थी रंगीनियां
दिलों में थी गर्मियां
मिलते थे सब गले मिल के
पीते थे चाय साथ में
ना जाने कहां खो गया
वो मीठा मिलनसार वक्त
आज तो हर कोई है कतराता
मिलने से अब घबराता
चाय पीना तो दूर
साथ बैठने से भी कटता
समय समय की बात है
वो समय ना रहा तो क्या
यह समय भी कहां रहेगा
समय ही तो है साशवत
बाकी सब मिथ्या भ्रम है
१७/०१/२०२२
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