Tuesday, June 15, 2021

अलविदा

घुंघरू से खनकते होंगे बोल
चट्टान से फौलादी होंगे वचन
मां के आंसुओं का ना था वजूद
बागीचे मे तब खिलते थे गुलाब 
कैक्टस का ना था हिसाब

कितना कुछ समेट रखा था 
ओ बाबू, क्यूं चले गए तुम
बोली भी नहीं पाई थी सीख
क्या मांग नहीं सकते थे 
जीवन की अपने भीख?

जाना तय ही था, तो 
मां के आंसू भी ले जाते
हमारे सारे सपने भी ले जाते
यह जो टीस है ना दिल में मेरे
वो भुलाए नहीं भूल पाती में

ओ बाबू, क्यूं चले गए तुम
अलविदा हम कह ही ना पाए
ना ही कभी कह पाएंगे
स्नेह भरा हाथ तुम्हारा
सदा सर पर ही पाएंगे।
15/06/2021
©Deeप्ती

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