घुंघरू से खनकते होंगे बोल
चट्टान से फौलादी होंगे वचन
मां के आंसुओं का ना था वजूद
बागीचे मे तब खिलते थे गुलाब
कैक्टस का ना था हिसाब
कितना कुछ समेट रखा था
ओ बाबू, क्यूं चले गए तुम
बोली भी नहीं पाई थी सीख
क्या मांग नहीं सकते थे
जीवन की अपने भीख?
जाना तय ही था, तो
मां के आंसू भी ले जाते
हमारे सारे सपने भी ले जाते
यह जो टीस है ना दिल में मेरे
वो भुलाए नहीं भूल पाती में
ओ बाबू, क्यूं चले गए तुम
अलविदा हम कह ही ना पाए
ना ही कभी कह पाएंगे
स्नेह भरा हाथ तुम्हारा
सदा सर पर ही पाएंगे।
15/06/2021
©Deeप्ती
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