Tuesday, June 8, 2021

सफेद रूह


रूही किन्हीं खयालों में खोई चली जा रही थी। आज मीना जो उसकी सहेली है उसने बड़ी ही विचित्र बात बताई। क्या ऐसा सच मे हो सकता है भला?? 

*********कुछ देर पहले*******

मीना :- रूही पता है कल मेरे बाबूजी रेल से वापिस घर आ रहे थे। चंदन घाटी से रेल गुजरने वाली थी। वहीं चंदन घाटी जहां प्रेत आत्माएं बस्ती है" 

रूही :- " प्रेत आत्माएं...??? वो क्या सच में होती है..? हुंह में नहीं मानती। ऐसा भी कभी कुछ होता है भला। आत्मा सिर्फ आत्मा होती है। प्रेत व्रेत कुछ नहीं होता।"

मीना :- होता है रूही, ज़रूर होता है। अब तेरे मानने ना मानने से थोड़े ही कुछ होता है। मेरी पूरी बात तो सुन ना। फिर तय करना क्या सही है क्या झूठ। ठीक है..??

रूही ने अपनी गर्दन हां में हिलाई तो मीना ने आगे कहा।

" हां तो ट्रेन चंदन घाटी के पास पहुंचने वाली थी। सभी यात्रियों ने अपनी अपनी खिड़की बंद कर ली थी। तू तो जानती है मेरे पिताजी इन सब में विश्वास नहीं करते, सो उन्होंने अपनी खिड़की बंद नहीं करी। वो अपनी किताब पड़ने में मशगूल थे। तभी ट्रेन घाटी की सुरंग से गुजरने लगी। पल भर में ही ट्रेन में अंधेरा छा गया।"

"अंधेरा कैसे छा गया..? जब ट्रेन सुरंग में जाती है तो ट्रेन की सभी बत्तियां जल जाती है ना.. कुछ भी बोलती है मुझे डराने के लिए" रूही ने तुरंत मीना को टोक दिया।

" हां .. वही तो। मैने भी बिल्कुल यही कहा था जब पिताजी ने यह किस्सा सुनाया था। तब उन्होंने बताया की सभी परेशान थे कि बत्ती अपने आप जली क्यूं नहीं.. की अचानक, एक ज़ोर का झटका लगा, एक दो पल के लिए सभी अस्त व्यस्त हो गया था। अंधेरा था तो कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था। फिर दो चार पल बाद ट्रेन सुरंग से बाहर आ गई। ट्रेन की गति धीमी हो गई थी और धीरे से चिं.... चीं... करती वो रुक गई।"

"क्यूं रुक गई..? तुम तो बता रही थीं कि सभी डरते थे उस इलाके से .. फिर ट्रेन क्यूं रोक दी ड्राइवर ने..?"

" यही जानने के लिए कुछ यात्री उतरने लगे..इतने में पिताजी की नजर अपनी किताब पर गई जो वो पढ़ रहे थे.. वो गायब हो गई थी।"
" हुंह झटके की वजह से गिर गई होगी, सीट के नीचे चली गई होगी"

"अरे सुन तो बाबा। ऐसा ही पिताजी ने भी सोचा , तो वो इधर उधर नजर घुमाने लगे - सीट के नीचे देखा, पीछे देखा, यहां तक कि खिड़की के बाहर भी देखा। की कहीं झटके से उछल कर बाहर तो नहीं गिर गई। वो गायब हो गई थी... गायब... सच्ची"

"हुंह तो क्या हुआ एक किताब ही तो थी, गिर गई होगी। किसी के समान के नीचे फंस गई होगी। इसमें इतना घबराने की क्या बात है..?" 

" बात है। तभी तो बता रही हूं। हां तो जो यात्री उतर गए थे ट्रेन के रुकने का कारण जानने के लिए। वे इंजन तक पहुंच गए। ड्राइवर भी नीचे उतर चुका था और कुछ विस्मय से पटरी को देख रहा था।

वहां पहुंच कर लोगों ने पूछा क्या हुआ.. ट्रेन क्यूं रोक दी?? तब ड्राइवर ने पटरी पर इशारा करा। तब तक पिताजी भी वहां पहुंच चुके थे, उन्होंने देखा कि पटरी पर थोड़ा राल रंग पड़ा है और इस पर कुछ कागज फड़फड़ा रहे हैं। पास जा कर देखा तो वो कोई लाल रंग नहीं था बल्कि ताज़ा खून था। हां सच्ची। खून की महक होती है ना तो उसी से पहचाना।"

" कोई जानवर कट गया होगा ट्रेन से..? बेचारा.. च.. च.. च.." 

"अरे नहीं। ट्रेन तो पहले ही रुक गई थी कटता कैसे। कोई जानवर भी नहीं था वहां। ड्राइवर ने बताया कि उसने किसी को पटरी पर सोते देखा था दूर से, सो उसने ट्रेन को रोक दिया। लेकिन जब उतर कर देखा तो कोई नहीं था बस खून था और पास में एक किताब थी।

जानती हो वो किताब कौनसी थी?? वहीं जो पिताजी पढ़ रहे थे" मीना ने अपनी आंखे बड़ी करते हुए आखिरी बात बताई।

"वहीं किताब थी..? सच्ची..??" अब रूही की रूह कांपने लगी। 

"चल रूही अब मैं घर जाती हूं। पिताजी को अच्छा नहीं लग रहा है, जब से लौटे हैं बहकी बहकी बातें करने लगे है। डाक्टर बाबू को बुलाने जा रही थी में। अंधेरा होने से पहले घर पहुंचना है मुझे तो।" मीना तेज़ी से साइकिल को पेडल मार दवाखाने की ओर चली गई।

रूही की जान हलक मे आ गई थी। "मीना फिर कोई कहानी तो नहीं बना रही? मीना को आदत है किस्से कहानी गड़ने की। वैसे भी बड़ी जीवंत कहानियां सुनाती है.." घबराती हुई रूही अपने घर की ओर चल दी। उसका घर वैसे भी उस विशाल पीपल के पास से गुजरता है, जहां सुना है की प्रेत आत्माएं रहती है। 

वो कदम जल्दी जल्दी बढ़ाने लगी। तभी अचानक तेज हवा सर्र सर्रर... करती चलने लगी। वातावरण में अजीब अजीब आवाजें थी साथ में भयानक खामोशी भी। रूही को लगा मानो कोई उसके पीछे है। वह अपनी गति और तेज करती है, ऊपर बादल भी छा गए थे।

अचानक उसकी नजर दूर से एक सफेद आकृति पर गई जो तेज़ी से उसकी ओर आ रही थी। उसने भागना चाहा लेकिन कदम साथ ही नहीं दे रहे थे। चीखना चाहा, लेकिन आवाज़ हलक में अटक गई थी। 

वह भूतिया आकृति उसकी ओर तेज़ी से आ रही थी.... तेज़..... बहुत तेज़......

"आह... आ..आ" रूही ठोकर खा ज़मीन पर गिर गई थी, घुटने से खून बहने लगा। उसकी परवाह ना करते हुए वो उठी और भागने लगी घर की ओर... सफेद आकृति काफी करीब आ गई थी। घनघनाती ट्रिन ट्रिन की आवाज़ के साथ एक शैतानी हंसी हंसते हुए......।

रूही के हाथ पांव फूल गए थे, सर से पांव तक पसीने से तरबतर हो गई थी। अब कदम आगे नहीं बढ पा रहे थे, वो वहीं धरती पर अचेत हो गई। 

जब आंख खुली तो देखा.. सामने मीना बैठी है उसके घुटने पर पानी डाल रही है।

"मीना... वो.... वो... मेरे पीछे आ रही थी...??"

"अरे कोई नहीं था रूही। में ही आ रही थी।"
"लेकिन..... लेकिन वो सफेद थी... पांव भी नहीं थे"
" मैं ही थी.. तुझे डरा रही थी.. साइकिल पर सफेद चादर ओढ़ कर आ रही थी.. " कह कर मीना ज़ोर से खिलखिला के हंस दी.. 

"बुद्धू, कहानी सुना रही थी में। इतना भी नहीं जानती क्या मुझे..?" 

******

No comments:

Post a Comment